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Showing posts from April, 2020

💐* भक्तमाल कथा *💐

🌹 *भवसागर से पार कराने वाले भगवद्भक्त*🌹   ❗ *सदन कसाई*❗ प्राचीन समय में सदन नामक कसाई जाति के एक भक्त हो गए हैं । यद्यपि यह जाति से कसाई थे । फिर भी इनका हृदय दया से पूर्ण था ।आजीविका के लिए और कोई उपाय ना होने से दूसरों के यहां से मांस लाकर बेचा करते थे  स्वयं अपने हाथ से पशु वध नहीं करते थे ।इस काम में भी इनका मन लगता नहीं था ।पर मन मार कर जाति व्यवसाय होने से करते थे ।सदन का मन तो श्री हरि के चरणों में रम गया था । रात दिन वे केवल हरि हरि करते रहते थे । भगवान अपने भक्तों से दूर नहीं रहा करते । सदन के घर में वे शालग्राम रूप से विराजमान थे । सदन को इसका पता नहीं था ।वे तो शालग्राम  को पत्थर का एक बाट समझते थे और उससे मांस तौला करते थे। एक दिन एक साधु सदन की दुकान के सामने से जा रहे थे ।दृष्टि पड़ते ही वे शालाग्राम जी को पहचान गए । मांस विक्रेता कसाई के यहां अपवित्र स्थल में शालग्राम जी को देखकर साधु को बड़ा क्लेश हुआ । सदन से मांग कर वे शालिग्राम को ले गए । सदन ने भी प्रसन्नता पूर्वक साधु को अपना वह चमकीला बाट दे दिया ।साधु बाबा कुटिया पर पहुँचे ।उन्होंने विधिपूर्वक शालग्राम जी की पूजा

सिंदूर रोली का पेड़

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सिंदूर का पेड़ भी होता है यह सुन आपको आश्चर्य ही होगा। लेकिन यह सत्य है हमारे पास सब कुछ प्राकृतिक था पर अधिक लाभ की लालसा ने हमे केमिकल युक्त बना दिया। हिमालयन क्षेत्र में मिलने वाला दुर्लभ कमीला यानी सिंदूर का पौधा अब मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जाने लगा है। कमीला को रोरी सिंदूरी कपीळा कमुद रैनी सेरिया आदि नामो से जाना जाता है वहीँ संस्कृत में इसे कम्पिल्लत और रक्तंग रेचि भी कहते हैं। जिसे देशभर की सुहागिनें अपनी मांग में भरती हैं। जो हर मंगलवार और शनिवार कलयुग के देवता राम भक्त हनुमान को चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि वन प्रवास के दौरान मां सीता कमीला फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थीं।  बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है। वैसे तो यह पौधा हिमालय बेल्ट में होता है लेकिन विशेष देख-रेख करके मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में भारत के अलावा चीन, वर्मा, सिंगापुर, मलाया, लंका, अफ्रीका आदि देशो में अधिक पाया जाता है। इसके एक पेड़ से प्रतिवर

रामचरित मानस में वर्णित शबरी का चरित्र चित्रण

#शबरी - शबरी जंगल क्षेत्र में रहने वाले एक भील की कन्या थी, उसके पिता ने कम उम्र में जब उसका विवाह करना चाहा तो शबरी घर से भाग निकली और भागते हुए अनजान तरीके से मुनि मतंग के आश्रम के निकट पहुँच गई. जब वो घर से निकली और आश्रम की तरफ आई तो शाम हो चुकी थी. वो आश्रम के पीछे छुप गई भुखी प्यासी और फिर उसने आश्रम के निकट ऋषीयों के भोजन किये हुए जूठे पत्तल चाट कर अपना थोडी  बहुत भुख मिटाई लेकिन जूठन खाते ही उसके चित्त में शांति और मन में  एक अनजान प्रसन्नता और ऊर्जा भर गई.  रात भर छुप के रही, जब मुनि जन सुबह स्नान के लिये निकले तो शबरी ने सोचा जब तक ऋषी लौट के आते हैं मैं आश्रम के बाहर साफ सफाई कर देती हूँ क्युँकि अपने घर पर  भी यही कार्य हर सुबह वो करती ही थी और उसे आदत थी, उसने झाडू लगाया. मुनि वापस आये तो देखा, किसी ने आश्रम साफ सुथरा किया है, उन्होंने ईधर उधर देखा तो झाडीयों के पीछे छुपी हुई शबरी नजर आई. मुनि मतंग ने उसे पास बुलाया और फिर उसका परिचय जाना, उसने सब बात बतलाई. तब मुनि ने कहा पुत्री तुम्हें अपने घर लौट जाना चाहिये, तुम्हारे माता पिता परेशान होंगे. शबरी  ने कहा मुनिवर मैं अपनी

दैनिक अखबारों के लिए आवश्यक मंत्र

# दैनिक अख़बार और हम#            कवि कुमार विश्वास कहीं लिखते है कि ; 'जिसके विरुद्ध था युद्ध उसे हथियार बना कर क्या पाया? जो शिलालेख बनता उसको अख़बार बना कर क्या पाया?' आज अख़बार की दुनिया दोतरफ़ा संकट में है। मूल्यों का क्षरण तो लगातार हो ही रहा है, और आर्थिक रूप से पड़ने वाली मार तो और ज़्यादा संकट में डालेगी। अभी करोना रूपी महामारी को देखते हुए अख़बार सहित सभी उद्योग संकट में हैं, किन्तु ऐसा नहीं है कि पूरा का पूरा उद्योग जगत ठप पड़ जाएगा।  जैसे विनाश के पश्चात सृजन स्वाभाविक प्रक्रिया है, उसी प्रकार सभी उद्योग बहुत तेजी से अपने गति को प्राप्त कर लेंगे, ऐसा विश्वास है।    आजकल अखबारी जगत में संपादकीय , विज्ञापन एवम् प्रसार विभाग केवल मुनाफ़े और आज्ञा पर ही जीवित हैं ; होना भी चाहिए क्योंकि हर उद्योग का आधार ही मुनाफा है। असल बात तो यह है कि हिंदुस्तानी अख़बार दुनिया का एकमात्र ऐसा सुंदर उत्पाद (प्रोडक्ट) है, जो अपनी लागत मूल्य से कम से कम पाँच या दस गुना कम मूल्य में बिकता है क्योंकि शेष लाभ विज्ञापन आधारित माना जाता है। इसी कारण संपादकीय विभाग भी विज्ञापन विभाग के दबाव में रहता

Brand story of Parle G bisckut

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  भारत का पहला अपना बिस्किट  भारत में आज शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने कभी ‘पार्ले-जी’ के बारे में नहीं सुना होगा। यह ही वह बिस्किट है, जो आजादी के पहले से लोगों की चाय का साथी बना हुआ है। बच्चों से लेकर बड़ों तक हर किसी के लिए यह खास है। लोगों की कितनी ही यादें इससे जुड़ी हुई हैं। इतना ही नहीं पार्ले-जी ही वह पहला बिस्किट था, जो भारत में बना और आम भारतीयों के लिए बना। पार्ले-जी आज या कल का नहीं बल्कि कई सालों पुराना प्रोडक्ट है। भारत की आजादी से पहले इसकी नींव रखी गई थी। हालांकि, पार्ले-जी के आने से पहले इसकी कंपनी पार्ले शुरू की गई थी। भारत की आजादी से पहले देश में काफी अंग्रेजों का दबदबा था। विदेशी चीजें हर जगह भारतीय मार्किट में बेचीं जाती थीं। इतना ही नहीं उनके दाम भी काफी ज्यादा होते थे इसलिए सिर्फ अमीर ही उनका मजा ले पाते थे। उस समय अंग्रेजों द्वारा कैंडी लाई गई थी मगर वह भी सिर्फ अमीरों तक ही सीमित थी। ये बात मोहनलाल दयाल को पसंद नहीं आई। वह स्वदेशी आंदोलन से काफी प्रभावित थे और इस भेदभाव को खत्म करने के लिए उन्होंने उसका ही सहारा लिया। उन्होंने सोच लिया कि वह भारतीयों क

पत्नी वामांगी क्यों कहलाती हैं ?

शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है। शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती। वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए। पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म

🙏🙏हनुमत उपासना 🙏🙏

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#मंगलवार और #शनिवार के दिन हनुमान की विशेष पूजा तथा व्रत के विधान का क्या कारण हो सकता है? एक मत तो यह है कि मंगल और शनि अनिष्टकारक ग्रह हैं। क्योंकि हनुमान ने सभी ग्रहों, अतः शनि और मंगल को भी, रावण के चंगुल से छुड़ाया था, अतः ये दोनों ग्रह हनुमानपूजक का अनिष्ट नहीं करते। बहुत से स्थानों पर, विशेष कर दक्षिण भारत में, शनिवार को भी हनुमान पूजा का चलन है। मंगल के दिन की पूजा हनुमान के जन्म से जुड़ी है। हनुमान के जन्मदिवस के विषय में प्रमुख धारणा यह है कि हनुमान चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन मंगलवार को अवतरित हुए। अतः मंगल के दिन इनकी पूजा स्वाभाविक है।  शनिवार के दिन हनुमान की विशेष पूजा से एक रोचक प्रसंग जुड़ा है। रावण ने सब ग्रहों को अपने पैर के नीचे दबाकर रखा था जिससे कि वह मुक्त न हो सकें। उधर देवताओं ने ग्रहों की मुक्ति की एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार नारद ने रावण के पास जाकर पहले उसका यशगान किया। फिर उससे कहा कि ग्रहों को जीतकर उसने बहुत अच्छा किया। पर जिसे जीता जाए, पैर उसकी कमर पर नहीं, उसकी छाती पर रखना चाहिए। रावण को यह सुझाव अच्छा लगा। उसने अपना पैर

दैनिक अखबारों की समसामयिक व्यथा

     कवि कुमार विश्वास कहीं लिखते है कि ; 'जिसके विरुद्ध था युद्ध उसे हथियार बना कर क्या पाया? जो शिलालेख बनता उसको अख़बार बना कर क्या पाया?' आज अख़बार की दुनिया दोतरफ़ा संकट में है। मूल्यों का क्षरण तो लगातार हो ही रहा है, और आर्थिक रूप से पड़ने वाली मार तो और ज़्यादा संकट में डालेगी। अभी करोना रूपी महामारी को देखते हुए अख़बार सहित सभी उद्योग संकट में हैं, किन्तु ऐसा नहीं है कि पूरा का पूरा उद्योग जगत ठप पड़ जाएगा।  जैसे विनाश के पश्चात सृजन स्वाभाविक प्रक्रिया है, उसी प्रकार सभी उद्योग बहुत तेजी से अपने गति को प्राप्त कर लेंगे, ऐसा विश्वास है।    आजकल अखबारी जगत में संपादकीय , विज्ञापन एवम् प्रसार विभाग केवल मुनाफ़े और आज्ञा पर ही जीवित हैं ; होना भी चाहिए क्योंकि हर उद्योग का आधार ही मुनाफा है। असल बात तो यह है कि हिंदुस्तानी अख़बार दुनिया का एकमात्र ऐसा सुंदर उत्पाद (प्रोडक्ट) है, जो अपनी लागत मूल्य से कम से कम पाँच या दस गुना कम मूल्य में बिकता है क्योंकि शेष लाभ विज्ञापन आधारित माना जाता है। इसी कारण संपादकीय विभाग भी विज्ञापन विभाग के दबाव में रहता है। इस मूल्य की क्षीणता के स

क्रोधित हनुमान जी की पेंटिंग

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कुछ वर्ष पूर्व कर्नाटक के रहने वाले 'करण आचार्य' ने "क्रोधित हनुमान" की एक पेंटिंग बनाई थी, जिसकी प्रशंसा प्रधानमंत्री 'श्री नरेन्द्र मोदी जी' ने भी की थी और उनके द्वारा प्रशंसा किये जाने के बाद अचानक यह पेंटिंग देश भर में सुर्खियों में आ गया था।  हनुमान जी को अत्यधिक पूजे जाने का कारण:    🌸"बजरंग बली" के उज्ज्वल चरित्र और कृतित्व से सम्पूर्ण भारतवर्ष न जाने कितने सदियों से प्रेरणा लेता आया है।    🌸 हनुमान प्रतीक हैं उस स्वाभिमान" के जिन्होंने 'बाली' जैसे महापराक्रमी परंतु अधम शासक के साथ रहने की बजाए 'बाली' के अनाचार से संतप्त 'सुग्रीव' के साथ रहना स्वीकार किया था ताकि दुनिया के सामने यह आदर्श स्थापित हो कि सत्य और न्याय के साथ खड़ा होना ही धर्म है।     🌸हनुमान प्रतीक हैं उस "स्वामी-भक्ति" और "राज-भक्ति" के जिन्हें उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के प्रतिनिधि प्रभु श्रीराम का सानिध्य प्राप्त था परंतु उन्होंने अपने स्वामी सुग्रीव का साथ नहीं छोड़ा और उनके प्रति उनकी राजभक्ति असंदिग्ध रह

अख़बार का अर्धसत्य

दैनिक अख़बार और हम     --------------------------- मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ समाचार पत्र भी अस्तित्व में आया।इसी बीच करोना के दुष्प्रभावों  के बीच में दस दिन घर पर नहीं आया  तो दो-तीन दिन बाद इंतजार करना भी बंद कर दिया।अखबारों के प्रबंधन ने बाजार एवं वितरकों में विश्वास दिलाया कि अख़बार के मध्यमा से करोना  नहीं फैलता ,विक्रेताओं ने रोजी रोटी की समस्या को देखते हुए अख़बार बाटना पुनः प्रारंभ कर दिया ,घरों में काफी दिनों बाद आया तो उसे उठाकर पलटने में कोई उत्साह नहीं था। कुछ भी ऐसा नहीं था, जो उन दस दिनों में छूट गया लगा हो। अब अखबार अत्यंत कुपोषित और बीमार हालत ( हमारे एक वरिष्ठ के द्वारा दिया हुआ नाम ) में आ रहा है,  चेहरे की रौनक उतरी हुई है।   पहले के अखबारों की रौनक; बीस-बाइस रंगीन पेजों पर दुनिया भर की खबरें। देश , प्रदेश , शहर की खबरें। सिनेमा, बिजनेस, स्पोर्ट्स के पन्ने। युवाओं , महिलाओं के लिए अलग अलग परिशिष्ट। रंगीन तस्वीरों और शानदार सुर्खियों से सजेधजे अखबार।  सबकुछ अत्यंत आकर्षक ,चकाचक और हर पृष्ठ पर विज्ञापन  बेशकीमती जेवर की तरह सुशोभित होते थे। किसी नई नवेली दुल्हन की

रामचरिमानस के रचयिता श्री तुलसीदास जी

प्रयाग के पास बाँदा जिले में राजापुर नामक एक ग्राम है। वहाँ आत्माराम दुबे नाम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारी ब्राह्मण रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था।  संवत्‌ 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में इन्हीं भाग्यवान दम्पति के यहाँ बारह महीने तक गर्भ में रहने के पश्चात गोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म हुआ। जन्मते समय बालक तुलसीदास रोए नहीं, किंतु उनके मुख से 'राम' का शब्द निकला। उनके मुख में बत्तीसों दाँत मौजूद थे। उनका शारीरिक डील-डौल पाँच वर्ष के बालक का सा था। इस प्रकार के अद्भुत बालक को देखकर पिता अमंगल की शंका से भयभीत हो गए और उसके संबंध में कई प्रकार की कल्पनाएँ करने लगे। माता हुलसी को यह देखकर बड़ी चिंता हुई। उन्होंने बालक के अनिष्ट की आशंका से दशमी की रात को नवजात शिशु को अपनी दासी के साथ उसके ससुराल भेज दिया और दूसरे दिन स्वयं इस संसार से चल बसीं।  दासी ने, जिसका नाम चुनिया था, बड़े प्रेम से बालक का पालन-पोषण किया। जब तुलसीदास लगभग साढ़े पाँच वर्ष के हुए, चुनिया का भी देहांत हो गया, अब तो बालक अनाथ हो गया। वह द्वार-द्वार भटकने लगा। इस पर जगज्जननी पार्वती

रावण का इतिहास ,जानते हैं कि रावण कौन था ?

रावण कौन था ? प्रस्तुत है उसकी जीवनगाथा !! पूर्वकाल की बात है वैकुंठ लोक में जय-विजय नामक दो द्वारपाल थे. एक बार उन्होंने सनकादि बालक ऋषियों को वैकुंठ में जाने से रोक दिया था, उन्हें लगा कि बालकों को भला भगवान के पास क्या काम है. तब सनकादि ऋषियों में से एक ऋषि ने जय विजय को श्राप दे दिया कि तुम दोनों ने वैकुंठ लोक में मृत्युलोक जैसा नियम का पालन किया, स्वयं श्री हरि के द्वार पर सेवा में रहते हुये इतना ज्ञान भी नहीं है अत: तुम मृत्युलोक को प्राप्त हो जाओगे. दुसरे ऋषि ने कहा तुम्हें इस बात का भान भी नहीं कि श्री विष्णु लोक में यह परम्परा नहीं हो सकती. इसी बीच आवाज सुन कर स्वयं भगवान विष्णु उन सनकादि ऋषियों को लेने आ गये. जय-विजय ने ऋषियों से क्षमा माँगी. तीसरे ऋषि ने कहा कि श्राप वापस नहीं हो सकता, समय आने पर तुम्हें मृत्युलोक जाना ही होगा. और चौथे ऋषि ने कहा जैसे आज स्वयं नारायण हमें लेने आये है वैसे ही वो तुम्हें भी वापस वैकुंठ लोक लाने के लिये मृत्युलोक में आयेंगे. दूसरा कारण यह था कि एक बार नारदजी को अपनी भक्ति पर अभिमान आ गया और वो हर लोक में जा जा के अपनी भक्ति और तपस्या का बखान कर

रामायण सीरियल निर्माण की कहानी

रामायण कहानी 1976 में शुरू हुई।  फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।  भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। 1984 में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।  इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुखी माहीं

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प्रभु मुद्रिका मेली मुखी माहीं जलधि लांघी गए अचरज नाहिं।। प्रभु श्री रामचन्द्र जी ने माता सीता  की खोज में बंदरों की सेना को दक्षिण दिशा में श्री अंगद जी के नेतृत्व में भेजा, तो सभी बंदर श्री राम चन्द्र जी से आशीर्वाद प्राप्त कर चल दिए, आशीर्वाद प्राप्त करने के उपक्रम में श्री हनुमान जी सबसे पीछे चल रहे थे, तो इसके लिए उनसे लोगों ने पूछा आप सबसे पीछे क्यों हैं, तो उन्होंने बड़ा सुंदर उत्तर दिया, ग्रहण करने में सबसे पीछे एवम् देने में सबसे आगे रहना चाहिए,   वैसे भी आचार्य व्यास ने पुराण में लिखा, धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायाम्। महाजनो येन गतः स पन्थाः। यानी, धर्म का रहस्य अथवा स्वरूप इतना गहन है, मानो वह गुफाओं में छिपा है। अतः सभी उसका गहन अध्ययन नहीं कर सकते। सुगम मार्ग यही है कि जिन्होंने घोर तपस्या कर उस परम तत्व को जान लिया, तथा जिस रास्ते वे चले, उसी मार्ग पर चलना चाहिए।  खैर श्री हनुमान जी सीता जी की खोज में जंगल में गए तो उन्होंने श्री राम जी की दी हुई मुद्रिका को अपने मुख में रख लिया था, लोगों ने पूछा ऐसा क्यों तो कुछ लोगों ने बताया कि श्री हनुमान जी वस्त्र इत्यादि तो धारण करते

माता सीता की खोज प्रसंग

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अंगद कहइ जाउं मैं पारा। जियं संसय कछु फिरती बारा॥  जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सबही कर नायक॥  कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥  पवन तनय बल पवन समाना। बुधि‍ बिबेक बिग्यान निधाना॥ कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥ राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥ कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुं अपर गिरिन्ह कर राजा ॥ सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउं जलनिधि खारा॥ सहित सहाय रावनहि मारी। आनउं इहां त्रिकूट उपारी॥ जामवंत मैं पूंछउं तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही॥ एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई॥ तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना॥ माता सीता की खोज में जाने के लिए जामवंत जी से श्री अंगद जी कहते हैं मैं पर्वत के पार माता सीताजी की खोज में चला तो जाऊंगा, लेकिन लौटने में थोड़ा संसय है,जामवंत जी ने कहा आप सबसे योग्य हैं किन्तु आप सेना के नायक हैं आपको भेजना उचित नहीं होगा। तब जामवंत जी ने श्री हनुमान जी से कहा आप अपने बल कि पहचानें , आप पवन पुत्र हैं, आप बल बुद्धि ,विवेक एवम् ज्ञान के सागर हैं, रमकाज के लिए ही आ

महामारी नाश हेतु अचूक दुर्गासप्तशती मंत्र

आज #दुर्गा #सप्तशती पुस्तक से कुछ मंत्र पाठ किया । उस दौरान एक पेज पर मेरी नजर गई जिसमें दुर्गा सप्तशती पाठ के कुछ सिद्ध मंत्रो को विषयवार संकलित किया गया था। कुछ मंत्र बहुत ही सामान्य है और आपलोगो को याद भी होगा। मै बस इतना बता रहा हूं कि उन मंत्रो की प्रासंगिकता क्या है!!!!  👉#विश्व में #महामारी नाश के लिए:- "जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।" 👉विश्व व्यापी #विपत्तियों के नाश के लिए "देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वम् ईश्वरीं देवि चराचरस्य।" दिन में एक बार के लिए ही सही, आदि शक्ति स्वरूपा माता को याद कर ये मंत्र एक बार मन में पढ़ ले 🙏🙏

Medicine of CoAvid 19

फ्रांस गवर्नमेंट ने ऑफिशियली एनाउंस किया है कि 'Hydroxy chloroquine' दवा 'COVID-19' के उपचार में चमत्कारिक रूप से अत्यंत कारगर रही है, 80 रोगियों पर किये परीक्षण के आधार पर उन्होनें बताया कि 80 में से 78 रोगी मात्र 5 दिनों के भीतर ही पूर्ण रूप से रिकवर हो गए. जो अपने आप मे आश्चर्यजनक है.

राम नाम भवसागर  पार कराने  वाला 

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रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं। कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं॥ सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै। दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै॥ जो मनुष्य रघुवंश के भूषण श्री रामजी का यह चरित्र कहते हैं, सुनते हैं और गाते हैं, वे कलियुग के पाप और मन के मल को धोकर बिना ही परिश्रम श्री रामजी के परम धाम को चले जाते हैं। (अधिक क्या) जो मनुष्य पाँच-सात चौपाइयों को भी मनोहर जानकर (अथवा रामायण की चौपाइयों को श्रेष्ठ पंच (कर्तव्याकर्तव्य का सच्चा निर्णायक) जानकर उनको हृदय में धारण कर लेता है, उसके भी पाँच प्रकार की अविद्याओं से उत्पन्न विकारों को श्री रामजी हरण कर लेते हैं, (अर्थात्‌ सारे रामचरित्र की तो बात ही क्या है, जो पाँच-सात चौपाइयों को भी समझकर उनका अर्थ हृदय में धारण कर लेते हैं, उनके भी अविद्याजनित सारे क्लेश श्री रामचंद्रजी हर लेते हैं)॥ जय जय श्रीराम !!जय बजरंबली !!