जिजीविषा
# *जिजीविषा* गर्मी की छुट्टी आते ही गांव नामक निरीह शब्द पर एक साथ कई हमले होतें हैं..पहला हमला होता है दिल्ली,नवेडा, लोधियाना से पधारे मोहन गुड्डू और सुग्गन,भोला,राधेश्याम,बब्बन,मुन्ना टाइप प्रजाति का. इस प्रजाति के लोग दो साल पहले गांव छोड़ चुके होतें हैं..गाँव छोड़ने की वजह ये होती है कि ठीक दो साल पहले किसी ममता,बबिता,कलावती,विमला से इनकी शादी हो गयी होती है। शादी बाद इनका दुलहिन प्रेम इतना फफाने लगता है कि ये रात को आठ बजे ही किल्ली लगाकर सो जातें हैं, और सुबह दस बजे तब उठतें हैं,जब इनके बाबूजी खेत में गोबर फेंकने के बाद, दतुवन-कुल्ला करके गाय को लेहना देने के पश्चात नहा रहे होतें हैं.वहीं हैण्डपम्प चलाती गुड़िया से धीरे से पूछते हैं.. "गुड्डआ उठले ना रे अभी.. नौ बज गइल" ? गुड़िया धीरे से मुड़ी हिलाकर "ना" में जबाब देती है.इस गोपनीय जानकारी के बाद इनके बाबूजी के मुख से उत्प्रेक्षा,श्लेष,यमक अनुप्रास के रस में लिपटा,लक्षणा,व्यंजना की धधकती आग में पका,जो दिव्य और ओजपूर्ण वाक्य निकलता है,वो एस्थेटिक्स के नवेदितों,पिंगल के पढ़वइयों,ग़ज़ल के गवइयों के साथ हिंदी के स्वनाम