भारत चीन विवाद

गलवान नदी काराकोरम रेंज के पूर्वी छोर में समलिंगम से निकलती है और फिर पश्चिम में बहते हुए श्योक नदी में मिल जाती है, भारतीय सैनिक इस नदी की घाटी में गास्ट करते रहते हैं, ताकि चीन के अतिक्रमण को रोका जा सके। अब इसी नदी पर भारत की ओर से पुल का निर्माण किया जा रहा है, गलवां नदी की यह घाटी अक्साई चीन एवम् लद्दाख के बीच एल ए सी के निकट स्थित है। यह घाटी भारत की तरफ लद्दाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिन जियांग तक फैली है।यह भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ लगा हुआ है।
1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान भी यही घाटी ( गलवान  नदी) लड़ाई का मैदान बनी थी।
सेटेलाइट की तस्वीरों से पता चलता है कि चीन ने गलवान घाटी के मध्य तक पक्की सड़क का निर्माण कर लिया है,यहां चीन ने छोटी छोटी चौकियों का भी निर्माण कर लिया है, ऐसी तनाव की स्थिति में भारत ने अपने पुल निर्माण के कार्य तेज कर दिया है ताकि चीन के अतिक्रमण को रोका जा सके।
  इस संबंध में सामरिक मामलों के एक जानकार ने बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है:
  बरसों से सीमा पर चीन एक खास रणनीति से काम कर रहा है। इस चीनी रणनीति को सलामी स्लाइसिंग या कैबेज स्ट्रेटजी कहते हैं। सलामी स्लाइसिंग यानी मांस के किसी टुकड़े को इतना महीन और बारीक काटना कि अगले को लगे कि बहुत छोटा सा टुकड़ा है, उसके लिए क्यों युद्ध में उतरें! कैबेज स्ट्रेटजी भी वही है। पत्ता गोभी की एक पर्त को छील लें। सामने वाले को लगेगा कि कुछ ज्यादा नहीं गया, इसके लिए क्या तू तू- मैं मैं करें। लेकिन मौका मिलते ही सलामी से एक पर्त और काट ली जाती है, पत्ता गोभी की एक पर्त और छील ली जाती है और देखा जाता है कि आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? अगर प्रतिक्रिया उग्र नहीं हुई तो यह सिलसिला जारी रहता है। और फिर चंद सालों में आपकी आंख के सामने ही इलाके का भूगोल बदल जाता है।

चीन भारत के साथ ही नहीं, पूरे दक्षिणी चीन सागर में भी यही कर रहा है। जैसे कई बार चोर गल्ले में से इस तरह पैसे चुराते हैं कि किसी को चोरी का पता भी नहीं चले। लेकिन इस सलामी स्लाइसिंग को रोकना होगा। अब अगर हमने इस मनबढ़ चोर के हाथ नहीं काटे तो आज एक किलोमीटर, फिर कुछ महीने बाद दो किलोमीटर, और इस तरह कब्जा बढ़ाते हुए चोर खेत-खलिहान से होते हुए आपके दरवाजे तक पहुंच जाएगा। इससे पहले सलामी स्लाइसिंग रणनीति के हाथ पांव काटकर उन्हें अपाहिज बनाना होगा ताकि उन्हें पता चले कि कहीं न कहीं उन्हें रुकना होगा। इसके लिए युद्ध होता है तो हो।
अब सामरिक मामलों में अपनी सीमाओं की सुरक्षा तो सभी राष्ट्र करते हैं। इसमें गलत तो कुछ नहीं है, यह भी सत्य है, यदि युद्ध होगा तो रक्त बहेगा ही ,राष्ट्र की सीमाएं बिना किसी प्रयास के सुरक्षित नहीं रह सकतीं। इस प्रयास में कुछ बलिदान तो अवश्य  होगा।
इन परिस्थितियों के लिए हमें मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।
और इनके लिए तैयार भी होना होगा..... और भारतीय इसके लिए तैयार भी हैं।

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