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विवाह और गारी(गाली)

💐💐।।*विवाह और गारी(गाली)*।।💐💐 –––-------------------------- --विवाह सुरु से ही समाज मे आकर्षण का केंद्र रहा है, ब्यक्ति, परिवार, समाज तीनों इसके उमंग से भरे होते हैं। --------------------------------बीच के कुछ काल खंड को अगर छोड़ दिया जाए तो शादी बहुत ही प्रेम और सदभाव वातावरण में होती रही है, बीरकाल में ही दिखता है कि----   "'आधे माडव भाँवर घूमे, आधे झमक चले तलवार"' ----------------------------शादी में गारी का प्रचलन सुरु से रहा है, बारात लेकर आने से लेकर जाने तक, हर रस्म पे गारी दो परिवारों को ही नही दो समाज के बीच मधुर संबंध जोड़ देती थी। -------------------------------आज की शादियों में तो पता नहीं चलता कि कब लोग आए कब गये, कौन आया, कौन खाया, बुलाने वाला भी नही जानता।पहले ये नही था, तीन दिन की शादी में, बाराती और घराती सच में रिस्तेदार बन के जाते थे, और गारी उनके संबंधों को सीमेंट की तरह जोड़ देती थी। ---------------------------आइये हमारे पृर्वांचल की शादी में चलिये और गारी के साथ समाज से जुड़िये।बारात द्वार पे आते ही, गांव की औरते और लड़कियां, अपनी अभिव्यक्ति, आत्म

नई शिक्षा नीति

नई दिल्‍ली: कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को हरी झंडी दे दी है. 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है. HRD मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कहा कि ये नीति एक महत्वपूर्ण रास्ता प्रशस्‍त करेगी.  ये नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी. इस नीति पर देश के कोने कोने से राय ली गई है और इसमें सभी वर्गों के लोगों की राय को शामिल किया गया है. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि इतने बडे़ स्तर पर सबकी राय ली गई है अहम बदलाव  - नई शिक्षा नीति के तहत अब 5वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा. - बाकी विषय चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो, एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा   - अब सिर्फ 12वींं में बोर्ड की परीक्षा देनी होगी. जबकि इससे पहले 10वी बोर्ड की परीक्षा देना अनिवार्य होता था, जो अब नहीं होगा. - 9वींं से 12वींं क्लास तक सेमेस्टर में परीक्षा होगी. स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा -वहीं कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल की होगी. यानि कि ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्‍

श्री हनुमान जी के बारे में प्रसिद्ध १० रहस्य

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#चारो युग प्रताप तुम्हारा, है प्रसिद्धजगत उजियारा।। 👉 श्री हनुमानजी के बारे में कई ऐसे रहस्य हैं, जिन्हें आम भक्त जनों को जानना चाहिए: 1. हनुमानजी का जन्म स्थान ✍️कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। ✍️हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था। 2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी ✍️इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। इ

हवन एक वैज्ञानिक सत्य

फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जोकि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है। टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गई अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का संपर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है। हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की कि क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही! उन्होंने ग्रंथो में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए प

कोरोना.... साक्षात मौत ....

कोरोना....ये मौत की मुनादी है....   ----------------------------------------------- जब से कोरोना का आतंक फैला है तब से मौत को महसूस करने की कोशिश कर रहा हूं...शुरुआती दिनों में भय था...फिर सामना करने का साहस हुआ..फिर भय हुआ फिर साहस हुआ.. फिर भय हुआ फिर साहस हुआ... कमोबेश भय-साहस का सिलसिला मार्च से जारी है....लेकिन 14 जुलाई की सुबह जैसे ही खबर मिली कि मित्र सुनील नहीं रहे...भय का पलड़ा भारी हो गया...खबरों की भीड़ ने भय को मजबूत किया है... मनुष्य जबतक दुशमन की ताकत को समझ नहीं लेता तबतक भयभीत होना और भय के साथ मजबूत होना ही उसके लिए श्रेयस्कर है...                                           कल एक बड़े भाई ने फोन पर पूछा कि भाई लॉकडाउन के इस काल में समय कैसे कटता है... फोन पर उन्हें सच नहीं बता सका...मेरी दिनचर्या का सच कुछ इस प्रकार है... मैं हर दिन सुबह अखबार पढ़ने के साथ ही मौत को देखने –समझने की कोशिश करता हूं... मौत की संभावित आहट से डरता हूं... दिन ढलता है मौत का साया खत्म होने लगता है जिंदगी की संजीविनी संचारित होती है... दोपहर से शाम होते होते आर्थिक और सामाजिक रूप से सफल कहलाने

भारत चीन विवाद

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गलवान नदी काराकोरम रेंज के पूर्वी छोर में समलिंगम से निकलती है और फिर पश्चिम में बहते हुए श्योक नदी में मिल जाती है, भारतीय सैनिक इस नदी की घाटी में गास्ट करते रहते हैं, ताकि चीन के अतिक्रमण को रोका जा सके। अब इसी नदी पर भारत की ओर से पुल का निर्माण किया जा रहा है, गलवां नदी की यह घाटी अक्साई चीन एवम् लद्दाख के बीच एल ए सी के निकट स्थित है। यह घाटी भारत की तरफ लद्दाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिन जियांग तक फैली है।यह भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ लगा हुआ है। 1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान भी यही घाटी ( गलवान  नदी) लड़ाई का मैदान बनी थी। सेटेलाइट की तस्वीरों से पता चलता है कि चीन ने गलवान घाटी के मध्य तक पक्की सड़क का निर्माण कर लिया है,यहां चीन ने छोटी छोटी चौकियों का भी निर्माण कर लिया है, ऐसी तनाव की स्थिति में भारत ने अपने पुल निर्माण के कार्य तेज कर दिया है ताकि चीन के अतिक्रमण को रोका जा सके।   इस संबंध में सामरिक मामलों के एक जानकार ने बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है:   बरसों से सीमा पर चीन ए

सामान्य मनुष्य के शौक़

हम जैसे सामान्य व्यक्ति के जीवन की कई व्यथाएं हैं ;  हमारी जिंदगी के तंबू के चार बम्बू होते हैं बाप के हिसाब से पढ़ाई... बाप के अरमानों के अनुरूप सरकारी नौकरी का प्रयत्न.. बाप की नाक ऊंची कर देने वाली शादी... बीवी बच्चों को बढ़िया जिंदगी देने का संघर्ष.. अब जिसकी गाँ$ में चार चार बम्बू ठसे हुए हों अपने जीने के लिए क्या जगह होगी भला..... पर हॉबी होना तो मांगता है न .... अब फोटोग्राफी, जानवर पालना, खेल, घूमना, पढ़ना (साहित्य वगैरह) अगर ऐसा कोई कीड़ा होता भी है तो हमें  उसके भीतर घुसने की जगह ही नहीं मिलती... फोटोग्राफी इत्यादि का शौक़ तो जैसे पालना हाथी पालना होता है हम जैसों के लिए। कुत्ता पालने की इक्षा मर जाती है के साला जो थोड़े पैसे मिलते हैं जिनसे दोस्तों के साथ दारू सुट्टा देखूं या कुत्ते को बिस्किट खिलाएं,  खेल मोहल्ले के बगल के ग्राउंड में ईंट टिका खेली क्रिकेट भर होता है इसके आगे की औकात कभी बनती नहीं,  साहित्य सुरेंद्र मोहन पाठक से चालू हो प्रेमचंद होते हुए मस्तराम पर खत्म..... अब मस्तराम हो या प्रेमचंद पढ़ना बाप से छिपकर ही है काहे कि अंग्रेज़ी की ग्रामर और गणित के अलावा कच्छु और पढ़